Covid-19 2020
(एक ऐसा वायरस जिसने पूरी सृष्टि को रोक दिया है)
मानव उस परमेश्वर की बनाई हुई सबसे सुंदर रचना है। मनुष्य ही एक ऐसा जीवित प्राणी है जिसके पास सोच है! विवेक है! बुद्धि है! चेतना है! करुणा है! प्रेम है! दया है! श्रद्धा है! भक्ति है! उसके पास एक ऐसा विवेक है जिसके कारण वो सही और गलत की पहचान कर सकता है।
मानव आज बहुत आगे चला गया है। इस तकनीकी युग में उसने आविष्कारों की लाइन लगा दी है। मनुष्य सोचता है कि उससे बड़ा आज कोई भी नहीं है। उसको यह लगता है कि जो भी है सिर्फ मानव के कारण ही है लेकिन वह यह भूल गया है कि शक्ति कहां से मिल रही है। इस वैज्ञानिक युग में उसको सिर्फ अपने ही चमत्कार दिखते हैं। लेकिन इन चमत्कारों को चमत्कार बनाने वाली शक्ति को वह भूल गया और अपने ही माया जाल में फँस गया है। मनुष्य तो स्वयं कभी कभी नहीं जानता कि उसे इस जीवन में क्या-क्या झेलना पड़ेगा।
समय हमेशा बदलता है, समय बड़ा बल वान है यह कभी भी एक जैसा नहीं रहता। आज जो समय हम देख रहे हैं यह पहले हमने कभी नहीं देखा हमारे पूर्वज हमारे बड़े बुजुर्ग बोलते हैं कि कभी 100 साल पहले 1918 के लगभग ऐसा देखा गया था जब भी एक महामारी फैली थी, बोलते हैं उसे 100 साल पहले भी हुआ था, तब भी करोड़ों लोगों ने अपनी जान खोई थी तब भी हम ही जिम्मेदार थे और अब भी इस वायरस के कारण फैली महामारी के हम ही जिम्मेदार हैं।
मनुष्य-मनुष्य से लड़ रहा है। एक दूसरे को नीचा दिखाने में वह किसी भी हद तक चला जाएगा। आज इस आधुनिक युग में हम जिस वायरस से जूझ रहे हैं पूरा विश्व इस महामारी की चपेट में है और इसका कोई हल अभी तक हमें नहीं मिल पाया है। आज हम को यह सोचना पड़ेगा कि किसके कारण कौन भुगत रहा है।
कुछ लोग एवं कुछ मानव प्रवृतियां अपने आप को बहुत ताकतवर समझती हैं। ऐसी ताक़तें सोचती हैं की उन्होंने पूरे ब्रह्मांड पर अपना अधिकार कर लिया है। उनसे बड़ा कोई खोजी नहीं है। ना कोई वैज्ञानिक है। वह जो चाहे जैसा चाहे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर सकता है। वह सर्वेसर्वा हो गया है। लेकिन आप जिस की खोज मैं है, जिसने आप का निर्माण किया वह सर्वशक्तिमान ईश्वर कभी ना कभी तो अपनी इस बनाई हुई रचना को जिस में खोट आ गया है ठीक करेगा, जो गलत दिशा में चली गई उसे सुधरेगा।
इसलिए प्रकृति बार बार परीक्षा लेती है! सचेत करती है! सुधर जाओ,अहंकार मत रखो! मर्यादा को मत तोड़ो, नहीं तो पूरी मानव जाति को उसका भुगतान करना पड़ेगा जैसे एक रावण के गलत कदम ने पूरे लंका का विनाश कर दिया था, इस बात को मन में रखना चाहिए।
जब आप अपने घर की खिड़कियों से बाहर जाते हो तो कैसा अलग अनुभव हो रहा है, कुछ खरा! कुछ मीठा! सब कुछ स्थिर हो गया है कहीं कुछ अच्छा हुआ है कहीं कुछ बुरा हुआ लेकिन प्रकृति ने अपने आपको पूरी तरह से स्वस्थ कर लिया है। आज सारा ब्रह्मांड शुद्ध हो गया है, वातावरण में अपनी एक अलग ही चहल है। पक्षी आज खुली हवा में सांस ले रहे हैं, वृक्ष लहरा रहे हैं, नदियों ने अपने पानी को स्वच्छ कर लिया है। हवा ने अपने आप को शुद्ध कर लिया है।
प्रकृति ने आज मनुष्य को जीने की नयी राह दी है। पूरी तरीके से शुद्ध और स्वच्छ कर दिया है। आज हम अपनी सांस रोके डरे हुए अपने घरों में बैठे है क्योंकि बाहर मृत्यु का भय है, कब किसको कहां क्या भुगतना पड़ेगा कोई नहीं जानता, लेकिन इतना है कि इस एक वायरस ने सबको अपने संस्कार, अपनी बुरी एवं अच्छी आदतें, रिश्ते नाते, जीवन को शुद्ध तरीके से जीने की कला, एक दूसरे की महत्ता, धन की महत्ता, आपके अपने कर्म-संस्कार, अपनी गलत आदतों का नतीजा, सबको एक कटघरे में लाकर सोचने पर मजबूर कर दिया है। आपकी सादगी से भरपूर आपके संस्कारों से भरा जीवन जैसे कभी सालों पहले जीते थे वैसे ही जीवनशैली अपनाने को मजबूर कर दिया है।
प्रकृति की यह सारी व्यवस्था हमें एक संकेत है। यह हमें सचेत कर रही है कुछ याद दिला रही है। यह हमसे बोल रही है तुम अपने जीवन का बहुत जरूरी अनमोल सामान जिसे हम अध्यात्म बोल सकते हैं! जिसे हम आत्मा के चिंतन के रूप में जानते हैं, जो कि जीवन को सुचारु रूप में चलाता है कहीं बहुत पीछे छोड़ा आए है, उसे भूल गए है। अब समय है उसको पकड़ो संभलो सचेत हो जाओ प्रकृति तुम्हें एक मौका दे रही है आवश्यक नहीं है कि यह मौका प्रकृति आपको बार-बार देगी।
मनुष्य जीवन हर पल परीक्षा लेता है। हर एक युग में आपने देखा होगा कि मानव को कैसे अपनी परीक्षा देना पड़ती है, जब जब पृथ्वी पर अत्याचार होता है, मनुष्य अपने ही कारण दूसरे मनुष्य के जीवन को खतरे में डाल देता है। आसुरी प्रवृत्तियां बढ़ जाती हैं, मानव जाति खतरे में आ जाती है, तब प्रकृति कहर ढाती है। ईश्वर कोई कोई ऐसे चक्रव्यूह देता है जिससे मनुष्य सबक ले सकें समझ सके कि कहां ग़लतियाँ हो रही है क्योंकि यदि वह सबक नहीं सीखेगा तो पृथ्वी कैसे बचेगी जो कुछ दैवीय शक्तियां बची है वह भी नष्ट हो जाएंगी, इसलिए हमें अपनी पृथ्वी संपूर्ण ब्रह्मांड सभी नक्षत्रों की दैवीय ऊर्जा को बचाने के लिए हर युग में परीक्षा देनी पड़ती है। जब प्रकृति कुछ देती है कुछ बताती है तो उसमें हमें कुछ खोना पड़ता है लेकिन वह हमारे शेष जीवन को सुरक्षित कर जाती है जो हजारों साल तक के लिए हमारी पीढ़ियों को सुरक्षा देती है।
इसलिए उस परम शक्ति पर विश्वास करो। अपने कर्म पर विश्वास करो, अपने संकल्प पर विश्वास रखो एवं अपने संकल्प से अपने कर्मों को एक नई और सही दिशा दो। हमारा भारत महान है! भारत ने सदैव अपनी महानता एवं मुश्किल समय में एकजुट हो जाने का संदेश पूरे संसार को दिया है, एक नई दिशा दी है। हम कहीं ना कहीं अपने संस्कारों के तले आ जाते हैं। अच्छे संस्कार हमेशा साथ देते हैं यदि मनुष्य भटक भी जाते हैं तो यह संस्कार उनको सही रास्ता दिखाने में साथ देते है। अच्छे संस्कार कभी भी एक मानव को बे वजह दूसरे मानव को हानि पहुंचाने की शिक्षा नहीं देते।
ईश्वर भी उनका साथ देता है जो कर्म अच्छाई और जन कल्याण की भावना से निहित होते हैं, यह अलग बात है कि कभी-कभी वह ऐसी परेशानी में डाल देता है जिससे निकलना मुश्किल है लेकिन उस समस्या से निकालता भी ईश्वर ही है। मानव जीवन एक प्रयोगशाला है जिसके अंदर कुछ ना कुछ प्रयोग चलते रहते हैं, कुछ घटनाएँ नहीं होंगी तो यह जीवन का चक्र पूरा कैसे होगा! घबराना नहीं है! बस अपने रास्ते पर निकल पढ़ो, अच्छे संस्कारों को साथ ले करके चलो, प्यार के साथ अपने शोध और मजबूत संकल्प के साथ एवं अपने संयम के साथ चलते रहो अपने आत्मबल और विश्वास को अपने साथ रखो यह सब एक आशीर्वाद के रूप में आपको सभी परिस्थितियों से निकाल देंगे।
अभी तो जीवन शेष है। सृष्टि को चलते जाना है, आपको तो बस अपना सफर तय करना है, मानव जीवन का चक्र कभी रुकने वाला नहीं है यदि आपको अपना सफर तय करने का तरीका आ जाए तो यह जीवन यात्रा आसान है यदि आपको पता चल जाए इस जीवन सफर में किस-किस सामान की आवश्यकता है तो सफर आसान हो जाएगा नहीं तो यह जीवन यूं ही बीत जाएगा।
मनुष्य को अपने जीवन में कुछ भी पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है। यदि थोड़ा खोकर सोच से ज्यादा मिल जाए और आपको अपने जीवन यात्रा का अर्थ समझ में आ जाए एवं जीने का तरीका आ जाए तो यह सृष्टि आपकी है। मानव ही उत्पत्ति करता है और वही इस के विनाश का कारण बनता है।
समय बदलेगा! उत्पत्ति और विनाश सृष्टि का एक नियम है, विनाश है तो उत्पत्ति अवश्य होगी! बस पृथ्वी अपने आप को सकारात्मक ऊर्जा से अपने आपको ठीक करना चाहती है। मनुष्य अपने कर्म का धनी है यदि उसका आत्मसंयम, उसका संकल्प, उसका कर्म एक अच्छी और सही दिशा में चले तो हम अपने सृष्टि को संजोकर रख सकते हैं। यह हमारे आपके ऊपर निर्भर है। वह परम शक्ति आपके साथ हमेशा है बस निकल पड़े अपने इस मनुष्य जीवन को सही तरीके से जीने की सफर पर आपका विश्वास आपको हर एक दुर्गम रास्ते को पार करा देगा। बस अपनी सोच बदले, उसे नकारात्मक नहीं सकारात्मक दिशा दे।
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